1. कार्य-पद्धति के अनुसार कम्प्यूटर
पाँच प्रकार के माने जाते हैं
1) अंकीय (Digital) कम्प्यूटर - साधारण भाषा में कम्प्यूटर शब्द का सीधा अर्थ होता है, अंकीय कम्प्यूटर। ये कम्प्यूटर सभी प्रकार की सूचनाओं को द्विआधारी पद्धति (Binary system) में बदलकर (अर्थात् .1 अंकों में) अपना कार्य करते हैं। ये सभी दे प्रकार की गणनाएँ गिनकर (जोड़कर) करते हैं, भले ही गुणा या भाग अथवा घात निकालने का कार्य क्यों न हो। ये प्रति सेकण्ड है करोड़ों गणनाएँ करने में सक्षम है। इन कम्प्यूटरों की विशेषता यह है होती है कि इनकी गणना अत्यन्त शुद्ध होती है। इनमें किसी भी प्रकार की संक्रियाएँ (operations) की जा सकती है। अंकीय कम्प्यूटरों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-शत प्रतिशत शुद्धता - एवं यथार्थता, सर्वोन्मुखता एवं व्यापकता , लघु आकार व कम भार और कम मूल्य।
2) अनुरूप (Analogue) कम्प्यूटर—एनालॉग शब्द का अर्थ है दो राशियों में अनुरूपता। एनालॉग कम्प्यूटर में किसी राशि को इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की सहायता से विद्युत् संकेतों में परिवर्तित किया जाता है। जिस प्रकार अंकीय कम्प्यूटर राशियों को गिनकर कार्य करता है, उसी प्रकार अनुरूप कम्प्यूटर विद्युत स्पन्दों (Pulses) को मापकर अपना कार्य करता है।
प्रत्येक भौतिक विधि या राशि को अवकलन गणित (Diferential calculus) का प्रयोग कर समीकरणों में बदल लिया जाता है ,फिर अनुरूप कम्प्यूटरों के एम्पलीफायर ब्लॉक्स की सहायता से इनके अनुरूप विद्युत् परिपथ की रचना कर ली जाती है। अब इन एम्प्लीफायरों का जो निर्गम (outpur) होता है। वह अवकलित समीकरण को समाकलित कर (intergrate) निकला परिणाम होता है।
3) संकर (Hybrid) कम्प्यूटर - इनमें अंकीय एवं अनुरूप के दोनों कम्प्यूटरों की विशेषतओं का सम्मिश्रण किया जाता है। इनका उपयोग अधिकांशत: स्वचालित उपकरणों में किया जाता है।
अनुरूप कम्प्यूटरों में विचाराधीन भौतिक विधि से नियंत्रण के लिए एक ही क्षण में दिशा-निर्देश मिल जाते हैं एवं वह लगातार उस विधि पर नियंत्रण करता रहता है, लेकिन इसके द्वारा प्राप्त होने वाले परिणामों में शुद्धता नहीं होती इसलिए विद्युतीय अनुरूपण के पश्चात् इससे मिलने वाले संकेतों को आंकिक रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है जिससे शत-प्रतिशत शुद्ध परिणाम प्राप्त हो सकें। वे इलेक्ट्रॉनिक यंत्र जिनके द्वारा अनुरूप संकेतों को अंकीय संकेतों या उसके विपरीत कार्य-पद्धति अपनायी जाती है, मोडेम कहलाते हैं।
4) प्रकाशीय (Optical )कम्प्यूटर - पाँच पीढ़ी के कम्प्यूटरों के रूप में इस प्रकार के कम्प्यूटर बनाए जा रहे हैं। जिनमें एक अवयव को दूसरे से जोड़ने का कार्य ऑप्टिकल फाइबर के तारों से किया जाता है तथा इनके गणना करने वाले अवयव प्रकाशीय पद्धति पर बनाए गए हैं। विद्युतीय संकेत (electrical signal) को गति 3 लाख किलोमीटर के सेकण्ड होता है लेकिन इतनी गति से भी 1 मीटर तक जाने में किसी भी संकेत को 3.3 नैनो सेकंड का समय लगता है। इसलिए गणना बहुत कम समय में करने के लिए बिना तार के कम्प्यूटर बनाने को आवश्यकता हो रही है जिसे ऑप्टिकल फाइबर पद्धति से हल करने को कोशिश की जा रही है।
5) आण्विक (Atomic) - कार्नेगी विश्वविद्यालय में ऐसे परमाण्विक कम्प्यूटर पर खोज कार्य जारी है जो कुछ विशेष प्रोटोन अणुओं को एकीकृत परिपथ में बदल दे और कम्प्यूटर को इतनी अधिक स्मृति-क्षमता प्रदान कर दें कि ऐसा कम्प्यूटर आज के कम्प्यूटरों से 10000 गुनी क्षमता का हो एवं गति से सम्पन्न हो जाए । हाडोंप्सिन नामक प्रोटीन में 10000 गीगाबाइट (10 बाइट) के बराबर जानकारी को संग्रहीत किया जा सकता है और 10 माइक्रो सेकण्ड की क्षमता से कार्य किया जा सकता है।
2. आकार के आधार पर -
पाँच प्रकार के कम्प्यूटर है।
(i) माइक्रो कम्प्यूटर (256 किलो-बाइट) - एक ही बॉक्स के अन्दर कैथोड-रे ट्यूब , पिक्चर ट्यूब और माइक्रो प्रोसेसर चिप्स को लगाकर एक टाइपराइटर के समान की-बोर्ड (key-board) लगाकर बनाए गए , टेलीविजन के बराबर कम्प्यूटर को माइक्रो कम्प्यूटर कहा जाता है। इसे माइक्रो कम्प्यूटर दो कारणों से कहा जाता है (1) यह माइक्रो प्रोसेसर का उपयोग करता है । (2) माइक्रो कम्प्यूटर चार प्रकार के होते हैं - (a) गृह कम्प्यूटर, (b) व्यक्तिगत कम्प्यूटर, (c) लैपटॉप कम्प्यूटर तथा (d) शब्द प्रक्रमक।
(ii) मिनी कम्प्यूटर (256 किलोबाइट से 12 मेगाबाइट) - डिजीटल इक्यूपमेंट कॉरपोरेशन (डी.ई.सी.) ने 1959 में प्रोग्रामेबिल डेटा प्रोफेसर-1 (पी.डी.पी.-1) को बनाकर मिनी कम्प्यूटरों के उत्पादन का शुभारंभ किया था। इसके संशोधित मॉडल डी.पी.-8 में एकीकृत परिपथों (ICs) का उपयोग कर इस कम्प्यूटर का आकार बहुत छोटा बना दिया गया जिससे कम्प्यूटर शब्द का जन्म हुआ चूँकि मिनी कम्प्यूटर का आकार एक छोटी अलमारी के बराबर होता है, इसलिए इन्हें मिनी कम्प्यूटर कहा जाने लगा। यह कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर
से लगभग 5 से 50 गुना अधिक गति से कार्य कर सकता है। इनके द्वारा 5 लाख से लेकर 50 लाख संक्रियाएँ प्रति सेकंड प्रतिपादित की जा सकती हैं।
(iii) सुपर मिनी कम्प्यूटर (1 से 80 मेगाबाइट) - उन मिनी कम्प्यूटरों को जिनमें सुपर चिप 80386 का प्रयोग करके उन्हें अति शक्तिशाली बना दिया गया, सुपर मिनी कम्प्यूटर कहा जाता है। अधिक विकसित चिप्स ने यह संभव कर दिखाया है कि एक छोटे से कैबिनेट साइज के कंप्यूटर में 5 लाख संक्रियाएँ प्रति सेकंड को गति और 80 मेगाबाइट को मुख्य स्मृति समाहित होती हैं । ऐसे मिनी कम्प्यूटरों को जिनमें मेन फ्रेम कम्प्यूटर प्रोसेसिंग क्षमता हो, सुपर मिनी कम्प्यूटर कहते हैं
(Iv) मेन फ्रेम कम्प्यूटर (10 से 123 मेगाबाइट ) - कम्प्यूटरों को छोड़कर विशाल आकार वाले सभी कम्प्यूटरों को मेन फ्रेम कम्प्यूटर कहते हैं। इस प्रकार के कम्यूटरों के प्रकरणों को बड़े स्टील के चौखटों में लगाकर बनाया जाता है । तभी से बड़े कम्प्यूटरों का नाम मेन फ्रेम कम्यूटर पड़ा ।वॉल्व पर आधारित एनीयक, ट्रांजिस्टर पर आधारित एडवॉक एकीकृत पारपथों पर आधारित आई. बी. एम . 350 तथा चतुर्थ पीढ़ी का प्रथम कम्प्यूटर एनीयक lV सभी मेन प्रेम कम्प्यूटर थे । बाद के सुपर कम्प्यूटर इतने विशाल क्षमता वाले बने कि मेन फ्रेम कम्प्यूटर को उनके सामने मिनी कम्प्यूटर कहा जाने लगा।
(v) सुपर कंप्यूटर (8 से 512 मेगाबाइट) - उन कंप्यूटरों में 52 मेगाबाइट (यानी, 52 × 10) से अधिक की भंडारण क्षमता होती है और जिनके पास 500 मीटर (यानी 500 x 10) क्षमता है मुख्य विशेषताएं हैं:-
(a) इन में 32 या 64 समानांतर परिपथों से काम कर रहे माइक्रो प्रोसेसर की मदद से सूचनाओं पर एक साथ काम किया जाता है, जिससे 5 अरब (5. 16) के प्रति गणना करता है।
(b) इनमें उच्व-भण्डारण घनत्व वाली चुम्बकीय बबल स्मृति (Bubble Memories) या आवेश युग्मित युक्तियों वाली स्मृतियों का उपयोग किया जाता है जिनकी सहायता से छोटी-सी जगह में सूचनाओं का वृहत् भण्डार रखा जा सकता है।
भारत में सुपर कम्प्यूटर (Super Computer in india) - 10000 का भारत में परम सीरीज के सुपर कम्प्यूटर ‘ निर्माण सी-डैक (CDAC-Centre for Development of Advanced Computing) पुणे द्वारा 1998 में किया गया। इसके निर्माण का श्रेयसी- डैक (C-DAC) को निदेशक विजय भास्कर को जाता है। सी-डैक ने ‘परम पद्यम (Parampadam) नाम से भी सुपर कम्प्यूटर का विकास किया है। 'अनुपम' श्रृंखला के सुपर कम्प्यूटर का विकास बार्क (BARC-Bhabha Atomic Research centre) मुम्बई द्वारा जबकि ‘पेस' (Pace) सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का विकास डी आरडीओ (DRDO-Defence Research and Development organisation) हैदराबाद द्वारा किया गया।
भारत क के प्रथम सुपर कम्प्यूटर ‘फ्लोसॉल्वर (Flowsolver)का विकास नाल (NAL- NationalAeronautics lab) बंगलुरू द्वारा किया गया।
पाँच प्रकार के माने जाते हैं
1) अंकीय (Digital) कम्प्यूटर - साधारण भाषा में कम्प्यूटर शब्द का सीधा अर्थ होता है, अंकीय कम्प्यूटर। ये कम्प्यूटर सभी प्रकार की सूचनाओं को द्विआधारी पद्धति (Binary system) में बदलकर (अर्थात् .1 अंकों में) अपना कार्य करते हैं। ये सभी दे प्रकार की गणनाएँ गिनकर (जोड़कर) करते हैं, भले ही गुणा या भाग अथवा घात निकालने का कार्य क्यों न हो। ये प्रति सेकण्ड है करोड़ों गणनाएँ करने में सक्षम है। इन कम्प्यूटरों की विशेषता यह है होती है कि इनकी गणना अत्यन्त शुद्ध होती है। इनमें किसी भी प्रकार की संक्रियाएँ (operations) की जा सकती है। अंकीय कम्प्यूटरों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-शत प्रतिशत शुद्धता - एवं यथार्थता, सर्वोन्मुखता एवं व्यापकता , लघु आकार व कम भार और कम मूल्य।
2) अनुरूप (Analogue) कम्प्यूटर—एनालॉग शब्द का अर्थ है दो राशियों में अनुरूपता। एनालॉग कम्प्यूटर में किसी राशि को इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की सहायता से विद्युत् संकेतों में परिवर्तित किया जाता है। जिस प्रकार अंकीय कम्प्यूटर राशियों को गिनकर कार्य करता है, उसी प्रकार अनुरूप कम्प्यूटर विद्युत स्पन्दों (Pulses) को मापकर अपना कार्य करता है।
प्रत्येक भौतिक विधि या राशि को अवकलन गणित (Diferential calculus) का प्रयोग कर समीकरणों में बदल लिया जाता है ,फिर अनुरूप कम्प्यूटरों के एम्पलीफायर ब्लॉक्स की सहायता से इनके अनुरूप विद्युत् परिपथ की रचना कर ली जाती है। अब इन एम्प्लीफायरों का जो निर्गम (outpur) होता है। वह अवकलित समीकरण को समाकलित कर (intergrate) निकला परिणाम होता है।
3) संकर (Hybrid) कम्प्यूटर - इनमें अंकीय एवं अनुरूप के दोनों कम्प्यूटरों की विशेषतओं का सम्मिश्रण किया जाता है। इनका उपयोग अधिकांशत: स्वचालित उपकरणों में किया जाता है।
अनुरूप कम्प्यूटरों में विचाराधीन भौतिक विधि से नियंत्रण के लिए एक ही क्षण में दिशा-निर्देश मिल जाते हैं एवं वह लगातार उस विधि पर नियंत्रण करता रहता है, लेकिन इसके द्वारा प्राप्त होने वाले परिणामों में शुद्धता नहीं होती इसलिए विद्युतीय अनुरूपण के पश्चात् इससे मिलने वाले संकेतों को आंकिक रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है जिससे शत-प्रतिशत शुद्ध परिणाम प्राप्त हो सकें। वे इलेक्ट्रॉनिक यंत्र जिनके द्वारा अनुरूप संकेतों को अंकीय संकेतों या उसके विपरीत कार्य-पद्धति अपनायी जाती है, मोडेम कहलाते हैं।
4) प्रकाशीय (Optical )कम्प्यूटर - पाँच पीढ़ी के कम्प्यूटरों के रूप में इस प्रकार के कम्प्यूटर बनाए जा रहे हैं। जिनमें एक अवयव को दूसरे से जोड़ने का कार्य ऑप्टिकल फाइबर के तारों से किया जाता है तथा इनके गणना करने वाले अवयव प्रकाशीय पद्धति पर बनाए गए हैं। विद्युतीय संकेत (electrical signal) को गति 3 लाख किलोमीटर के सेकण्ड होता है लेकिन इतनी गति से भी 1 मीटर तक जाने में किसी भी संकेत को 3.3 नैनो सेकंड का समय लगता है। इसलिए गणना बहुत कम समय में करने के लिए बिना तार के कम्प्यूटर बनाने को आवश्यकता हो रही है जिसे ऑप्टिकल फाइबर पद्धति से हल करने को कोशिश की जा रही है।
5) आण्विक (Atomic) - कार्नेगी विश्वविद्यालय में ऐसे परमाण्विक कम्प्यूटर पर खोज कार्य जारी है जो कुछ विशेष प्रोटोन अणुओं को एकीकृत परिपथ में बदल दे और कम्प्यूटर को इतनी अधिक स्मृति-क्षमता प्रदान कर दें कि ऐसा कम्प्यूटर आज के कम्प्यूटरों से 10000 गुनी क्षमता का हो एवं गति से सम्पन्न हो जाए । हाडोंप्सिन नामक प्रोटीन में 10000 गीगाबाइट (10 बाइट) के बराबर जानकारी को संग्रहीत किया जा सकता है और 10 माइक्रो सेकण्ड की क्षमता से कार्य किया जा सकता है।
2. आकार के आधार पर -
पाँच प्रकार के कम्प्यूटर है।
(i) माइक्रो कम्प्यूटर (256 किलो-बाइट) - एक ही बॉक्स के अन्दर कैथोड-रे ट्यूब , पिक्चर ट्यूब और माइक्रो प्रोसेसर चिप्स को लगाकर एक टाइपराइटर के समान की-बोर्ड (key-board) लगाकर बनाए गए , टेलीविजन के बराबर कम्प्यूटर को माइक्रो कम्प्यूटर कहा जाता है। इसे माइक्रो कम्प्यूटर दो कारणों से कहा जाता है (1) यह माइक्रो प्रोसेसर का उपयोग करता है । (2) माइक्रो कम्प्यूटर चार प्रकार के होते हैं - (a) गृह कम्प्यूटर, (b) व्यक्तिगत कम्प्यूटर, (c) लैपटॉप कम्प्यूटर तथा (d) शब्द प्रक्रमक।
(ii) मिनी कम्प्यूटर (256 किलोबाइट से 12 मेगाबाइट) - डिजीटल इक्यूपमेंट कॉरपोरेशन (डी.ई.सी.) ने 1959 में प्रोग्रामेबिल डेटा प्रोफेसर-1 (पी.डी.पी.-1) को बनाकर मिनी कम्प्यूटरों के उत्पादन का शुभारंभ किया था। इसके संशोधित मॉडल डी.पी.-8 में एकीकृत परिपथों (ICs) का उपयोग कर इस कम्प्यूटर का आकार बहुत छोटा बना दिया गया जिससे कम्प्यूटर शब्द का जन्म हुआ चूँकि मिनी कम्प्यूटर का आकार एक छोटी अलमारी के बराबर होता है, इसलिए इन्हें मिनी कम्प्यूटर कहा जाने लगा। यह कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर
से लगभग 5 से 50 गुना अधिक गति से कार्य कर सकता है। इनके द्वारा 5 लाख से लेकर 50 लाख संक्रियाएँ प्रति सेकंड प्रतिपादित की जा सकती हैं।
(iii) सुपर मिनी कम्प्यूटर (1 से 80 मेगाबाइट) - उन मिनी कम्प्यूटरों को जिनमें सुपर चिप 80386 का प्रयोग करके उन्हें अति शक्तिशाली बना दिया गया, सुपर मिनी कम्प्यूटर कहा जाता है। अधिक विकसित चिप्स ने यह संभव कर दिखाया है कि एक छोटे से कैबिनेट साइज के कंप्यूटर में 5 लाख संक्रियाएँ प्रति सेकंड को गति और 80 मेगाबाइट को मुख्य स्मृति समाहित होती हैं । ऐसे मिनी कम्प्यूटरों को जिनमें मेन फ्रेम कम्प्यूटर प्रोसेसिंग क्षमता हो, सुपर मिनी कम्प्यूटर कहते हैं
(Iv) मेन फ्रेम कम्प्यूटर (10 से 123 मेगाबाइट ) - कम्प्यूटरों को छोड़कर विशाल आकार वाले सभी कम्प्यूटरों को मेन फ्रेम कम्प्यूटर कहते हैं। इस प्रकार के कम्यूटरों के प्रकरणों को बड़े स्टील के चौखटों में लगाकर बनाया जाता है । तभी से बड़े कम्प्यूटरों का नाम मेन फ्रेम कम्यूटर पड़ा ।वॉल्व पर आधारित एनीयक, ट्रांजिस्टर पर आधारित एडवॉक एकीकृत पारपथों पर आधारित आई. बी. एम . 350 तथा चतुर्थ पीढ़ी का प्रथम कम्प्यूटर एनीयक lV सभी मेन प्रेम कम्प्यूटर थे । बाद के सुपर कम्प्यूटर इतने विशाल क्षमता वाले बने कि मेन फ्रेम कम्प्यूटर को उनके सामने मिनी कम्प्यूटर कहा जाने लगा।
(v) सुपर कंप्यूटर (8 से 512 मेगाबाइट) - उन कंप्यूटरों में 52 मेगाबाइट (यानी, 52 × 10) से अधिक की भंडारण क्षमता होती है और जिनके पास 500 मीटर (यानी 500 x 10) क्षमता है मुख्य विशेषताएं हैं:-
(a) इन में 32 या 64 समानांतर परिपथों से काम कर रहे माइक्रो प्रोसेसर की मदद से सूचनाओं पर एक साथ काम किया जाता है, जिससे 5 अरब (5. 16) के प्रति गणना करता है।
(b) इनमें उच्व-भण्डारण घनत्व वाली चुम्बकीय बबल स्मृति (Bubble Memories) या आवेश युग्मित युक्तियों वाली स्मृतियों का उपयोग किया जाता है जिनकी सहायता से छोटी-सी जगह में सूचनाओं का वृहत् भण्डार रखा जा सकता है।
भारत में सुपर कम्प्यूटर (Super Computer in india) - 10000 का भारत में परम सीरीज के सुपर कम्प्यूटर ‘ निर्माण सी-डैक (CDAC-Centre for Development of Advanced Computing) पुणे द्वारा 1998 में किया गया। इसके निर्माण का श्रेयसी- डैक (C-DAC) को निदेशक विजय भास्कर को जाता है। सी-डैक ने ‘परम पद्यम (Parampadam) नाम से भी सुपर कम्प्यूटर का विकास किया है। 'अनुपम' श्रृंखला के सुपर कम्प्यूटर का विकास बार्क (BARC-Bhabha Atomic Research centre) मुम्बई द्वारा जबकि ‘पेस' (Pace) सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का विकास डी आरडीओ (DRDO-Defence Research and Development organisation) हैदराबाद द्वारा किया गया।
भारत क के प्रथम सुपर कम्प्यूटर ‘फ्लोसॉल्वर (Flowsolver)का विकास नाल (NAL- NationalAeronautics lab) बंगलुरू द्वारा किया गया।
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